हर सांस पर मौत का साया था… लेकिन एनएचएस अस्पताल ने समय रहते एक 25 साल के युवक की जान बचा ली। गंभीर अस्थमा, भारी मोटापा और बंद होती सांसों के बीच जब सबकुछ थमता नजर आया, तब विशेषज्ञों की टीम और अत्याधुनिक इलाज ने चमत्कार कर दिखाया। यह सिर्फ इलाज नहीं था — ये ज़िंदगी की वापसी थी!
जब हर सांस कर रही थी संघर्ष
एनएचएस अस्पताल के फेफड़ों (पल्मोनोलॉजी) विभाग ने गंभीर अस्थमा अटैक (स्ट्रेटस अस्थमैटिकस) और मॉर्बिड ओबेसिटी से पीड़ित एक 25 वर्षीय युवक की जान बचाई। उसे आपातकालीन हालत में अस्पताल लाया गया, जहां उसे ठीक से सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था।
रेस्पिरेटरी फेल्योर की स्थिति में वेंटिलेटर पर शिफ्ट
डॉ. अंकित (डीएम पल्मोनोलॉजी) के नेतृत्व में विशेषज्ञों की टीम ने मरीज की जांच की और तुरंत उसे आईसीयू में भर्ती कर वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा। ब्रोंकोडायलेटर, स्टेरॉयड और ऑक्सीजन थेरेपी के जरिये इलाज शुरू किया गया।
चार दिन की गहन निगरानी, फिर सांस की नली हटाई गई
लगातार चार दिन की निगरानी और इलाज के बाद मरीज की स्थिति में सुधार हुआ। एक्सट्यूबेशन के बाद वह खुद से सांस लेने लगा और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लौट आया।
छह दिन बाद स्वस्थ होकर घर रवाना, किया धन्यवाद व्यक्त
मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है, घर लौट चुका है और डॉक्टरों की सलाह पर जीवनशैली सुधार कर रहा है। उसने एनएचएस अस्पताल और पल्मोनोलॉजी टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा, आप लोगों ने मुझे नई जिंदगी दी।
संदेश साफ है: अस्थमा को हल्के में न लें
डॉ. अंकित ने बताया कि अस्थमा का नियमित इलाज और वजन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है। सही जागरूकता और समय पर इलाज से मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं।
एनएचएस अस्पताल का पल्मोनोलॉजी विभाग न सिर्फ इलाज में उत्कृष्टता लाता है, बल्कि मरीजों को जीने की नई उम्मीद भी देता है। यह केस दिखाता है कि विशेषज्ञता, संवेदनशीलता और तकनीक के संगम से हर सांस को सुरक्षित किया जा सकता है।